" कुछ न कुछ तो ज़रूर होना है ; सामना आज उनसे होना है...
तोड़ो, फैंको , रखो , करो कुछ भी ; दिल हमारा है ; क्या खिलौना है ...
ज़िन्दगी और मौत का मतलब ; तुमको पाना है तुमको खोना है ...
तोड़ो, फैंको , रखो , करो कुछ भी ; दिल हमारा है ; क्या खिलौना है ...
ज़िन्दगी और मौत का मतलब ; तुमको पाना है तुमको खोना है ...
इतना डरना भी क्या है दुनिया से ; जो भी होना है वोह तो होना है...
उठ के महफ़िल से मत चले जाना ; तुमसे रौशन यह कोना कोना है ... "
कहीं कुछ रौशन है अगर कहीं कुछ जल रहा है...और जिसके जलने में ही महफिले दुनिया में रौनक है । रौशनी के त्यौहार दीपावली पे और क्या बात की जाए... एक शामे ग़ज़ल हो और उजालों से शुरुआत की जाए ।
इस महीने की २५ तारीख की किस्मत में दिवाली साथ है...दिए और बाती हर तरफ सजे हैं...आँखे दुनिया की चका चौंध को देख के फुले नहीं समां रही...हर जगह उमंग है , उत्साह है, त्यौहार है ।
मगर बाहर सब कुछ होते भी भीतर भी क्या वोही बात है?
ज्योति जो अंतर में अहर्निस जलती है क्या उसके लिए हमारे मन में वैसा ही अहलाद है? या फिर ये सब फ़िज़ूल की बात है ?
नहीं... मालुम है हमें की ...यही वो खाश बात (राज़) है जो हमेशा हमारी गुफ्तगू में साथ है ...
तो फिर, वहां अंतर्जगत में भी थोडा उजाला लाओ , दिए में तेल कहीं रीत रहा है ...जरा बाती तो उस्काओ ... आओ मेरे हमदम, थोड़े अपने भी करीब आओ...
"असतो मा सद्गमय ,तमसो मा ज्योतिर्गमय ,
मृत्योर्मा अमृतं गमय , आविरावी मयेधि"
और मित्रों सदैव याद रखें बुद्ध के वे अंतिम वचन .... "अप्प दीपो भव !"
[Be a Light unto Thyself]
ॐ शांति ! शांति! शांति!
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